भारत की न्यायपालिका में अदालतों के प्रकार और संरचना

भारत की न्यायपालिका (Indian court structure) के प्रमुख अंग कही जाने वाली अदालतों तो मुख्यतः तीन चरणों शीर्ष, मध्य और निचले चरण में बांटा गया है। शीर्ष अदालत को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) मध्य अदालत को हाई कोर्ट (High Court) और निचले चरण की अदालतों को डिस्ट्रिक्ट कोर्ट (District Court) कहते हैं।

आज हम इस लेख के माध्यम से आप लोगो तक भारतीय अदालतों की संरचना क्रम उनके कार्यक्षेत्र तथा उनकी कार्य सीमा में आने वाले अधिकार पर विस्तार पर चर्चा  करेंगे।

यह लेख पूरा पढ़ने के बाद आपको भारतीय न्यायपालिका के बारे में काफी कुछ महत्वपूर्ण और रोचक जानने को मिलेगा, इस लेख को पूरा पढ़ें और यदि आपके कोई प्रश्न है तो नीचे दिए हुए कमेंट बॉक्स पर हमें जरूर बताएं।

जैसा कि हम सब लोग जानते हैं कि भारत का नाम दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले देशों में शुमार किया जाता है। भारत की  जनसंख्या तो बहुत शानदार है ही इसके साथ-साथ यहां की न्याय व्यवस्था और न्यायपालिका भी बहुत  मजबूत और श्री चरणों में विभाजित होकर कार्य करती है। 

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भारतीय न्यायालयों/अदालतों का पदानुक्रम(Indian court structure)

भारत की अदालत का क्रम निर्धारण बड़ी सावधानी और निपुणता से किया गया है जो कि भारत देश न्यायपालिका को एक अत्यंत मजबूत बनती है।  भारतीय अदालतों की शक्तिया तथा अधिकार निचले स्तर से शीर्ष स्तर की ओर बढ़ते जाते है इसीलिए किसी भी निचली अदालत फैसले को उससे उच्च अदालत में चुनौती दी जा सकती है| सभी अदालतों के ऊपर शीर्ष अदालत ने सुप्रीम कोर्ट है उसका फैसला अंतिम और माननीय होता है।

सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court)

भारतीय संविधान के पाँचवे भाग के चौथे अध्याय कहता है की न्यायपालिका में सबसे ऊंचा स्थान सुप्रीम कोर्ट का है।  सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार शक्तियां व अधिकार क्षेत्र देश के किसी भी उच्च न्यायालय से ऊपर और सर्वमान्य है।  

माननीय सुप्रीम कोर्ट के अधिकार व शक्तियां निम्न है

मौलिक अधिकार संरक्षण

131वें  अनुच्छेद में सर्वोच्च न्यायालय के मौलिक क्षेत्राधिकार का अंकन किया है। 

ये मौलिक क्षेत्राधिकार ऐसे विवाद से संबंधित हैं, जिसमें विधि का या तथ्य का कोई प्रश्न अंतर्निहित है जिस पर कोई विधिक अधिकार का अस्तित्व अथवा विस्तार निर्भर करता है।

सर्वोच्च न्यायालय तीन तरह के मामलों की सुनवाई करता है –

  1. सरकार और एक या एक से अधिक संघ के राज्यों के बीच के विवाद।
  2. एक ओर सरकार और किसी राज्य या राज्यों एवं दूसरी ओर एक या एक अधिक अन्य राज्यों का विवाद।
  3. दो या दो अधिक राज्यों के बीच का आपस में विवाद।

संविधान में कुछ अन्य अनुच्छेदों में वर्णित विषयों जैसे अनुच्छेद 262 के अंतर्गत अंतर्राज्यीय जल आयोग संबंधी मामले अनुच्छेद 131 के तहत सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार में नहीं आते हैं।

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सलाह/परामर्श अधिकारिता 

संविधान का अनुच्छेद 143 कहता है की राष्ट्रपति चाहे तो किसी भी तथ्य विषय या संभावना जो कि जन-साधारण या  भारत के नागरिक से सम्बंधित है उस पर सर्वोच्च न्यायालय का परामर्श राष्ट्रपति ले सकते है और ऐसे प्रश्न को वे  सर्वोच्च न्यायालय के सम्मुख परामर्श हेतु भेज सकते है।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय अपना परामर्श राष्ट्रपति को भेज सकता है किन्तु दिए गए परामर्श पर राष्ट्रपति की बाध्यता नहीं होती वो चाहे तो उसे माने या नहीं।

एक और आवश्यक बात सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार भी है की वह अनावश्यक और व्यर्थ प्रश्नो के उत्तर देने से मना कर सकता है।

संविधान का संरक्षण

  1. संसद व अन्य राज्य विधान मंडल में पारित कानून अगर संविधान के अनुरूप नहीं तो माननीय सर्वोच्च न्यायलय उस पर रोक लगा सकता है। 
  2. सर्वोच्च न्यायलय उस कानून को अवैध घोषित कर सकता है को संविधान का उल्लघन करता हो।

पुनर्विचार या पुनर्विलोकन अधिकार

अनुच्छेद 137 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय अपने निर्णयों का पुनर्विलोकन कर सकता है और यदि सर्वोच्च न्यायालय को अपने निर्णय में कोई खामी दिखती है तो वह अपने निर्णय पर फिर से विचार कर उसमें आवश्यक परिवर्तन कर सकता है।

रिट (WRIT) अधिकारिता

संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रिट जारी किए जा सकते हैं।

अपीलीय क्षेत्राधिकार


सर्वोच्च न्यायालय अपील का उच्चतम न्यायालय है तथा उसे उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध सुनने का अधिकार प्राप्त है।

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उच्च न्यायालय (High Court)

राज्य के न्यायिक प्रशासन का प्रमुख उच्च न्यायालय होता है भारत में कुल 25 उच्च न्यायालय हैं इनमे तीन ऐसे है जो एक से अधिक राज्य सँभालते हैं। 

दिल्ली एकलौता केंद्रशासित प्रदेश है जिसके पास अपना उच्च न्यायालय है। 

प्रत्येक उच्च न्यायालय का एक मुख्य न्यायाधीश तथा कई न्यायाधीश होते हैं। 

भारत के मुख्य न्यायाधीश और संबंधित राज्य के राज्यपाल की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति होती है। 

भारतीय उच्च न्यायालयों की सूची

स्थानस्थापना वर्षउच्च न्यायालयों के कार्यक्षेत्र और स्थान नामप्रदेशीय-कार्यक्षेत्र
इलाहाबाद (लखनऊ में न्यायपीठ)1866इलाहाबादउत्तर प्रदेश
हैदराबाद1954आंध्र प्रदेशआंध्र प्रदेश
मुंबई (पीठ-नागपुर, पणजी और औरंगाबाद)1862मुंबईमहाराष्ट्र, गोवा, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव
कोलकाता (सर्किट बेंच पोर्ट ब्लेयर)1862कोलकातापश्चिम बंगाल
बिलासपुर2000छत्तीसगढ़बिलासपुर
दिल्ली1966दिल्लीदिल्ली
मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा, मिजोरम गुवाहाटी (पीठ- कोहिमा, इंफाल, आइजॉल, अगरतला, शिलांग और इटानगर)1948गुवाहाटीअसम, मणिपुर, और अरुणाचल प्रदेश
अहमदाबाद1960गुजरातगुजरात
शिमला1971हिमाचल प्रदेशहिमाचल प्रदेश
श्रीनगर और जम्मू1928जम्मू और कश्मीरजम्मू और कश्मीर
रांची2000झारखंडझारखंड
बंगलौर1884कर्नाटककर्नाटक
एर्नाकुलम1958केरलकेरल
जबलपुर (पीठ- ग्वालियर और इंदौर)1956मध्य प्रदेशमध्य प्रदेश
चेन्नई (पीठ- मदुरै)1862मद्रासतमिलनाडु और पांडिचेरी
कटक1948उड़ीसाउड़ीसा
पटना1916पटनाबिहार
चंडीगढ़1966पंजाब और हरियाणापंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़
जोधपुर (पीठ- जयपुर)1949राजस्थानराजस्थान
गंगटोक1975सिक्किमसिक्किम
नैनीताल2000उत्तराखंडउत्तराखंड
Source wikipedia.org

निचली अदालतें/ जिला न्यायालय(District court or lower court)

जिला या निचली अदालतें पूरे भारत में एक जैसा कार्य ही करते हुवे आपराधिक और दीवानी जैसे मामलो का निपटारा करती है।   

ये अदालतें संविधान के साथ साथ स्थानीय नियम और कानूनों को ध्यान में रख कर मामलो का फैसला सुनाती है। 

फास्ट ट्रेक कोर्ट क्या है? 

यह अदालतों का एक अतिरिक्त सेशन या सत्र है जिसमे लम्बे समय से चल रहे या फिर ऐसे मामले जिनके निपटारे में  अत्यधिक देरी लग रही हो उसकी  सुनवाई होती है।   ताकि ज्यादा समय लगने से कही न्याय की हानि न हो जाये। 

ट्रिब्यूनल

ट्रिब्यूनल विशेष रूप से एक व्यक्ति या संस्था को कहते जोकि न्यायिक कार्य करने का अधिकार रखता है। 

उदाहरण:  एक न्यायाधीश वाली अदालत में भी हाजिर होने पर वकील उस जज को ट्रिब्यूनल ही कहेगा।

2012, 8, अक्टूबर के दिन भारत के सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट के मुताबिक 18  ट्रिब्यूनल निम्न हैं-

  1. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल
  2. भारत का प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड
  3. कर्मचारी भविष्य निधि अपीलीय ट्रिब्यूनल
  4. आयकर अपीलीय ट्रिब्यूनल
  5. बिजली के लिए अपीलीय ट्रिब्यूनल
  6. सशस्त्र सेना ट्रिब्यूनल
  7. केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग
  8. केंद्रीय प्रशासनिक आयोग
  9. कंपनी लाॅ बोर्ड
  10. साइबर अपीलीय ट्रिब्यूनल
  11. बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण
  12. बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड
  13. टेलीकाॅम निपटान और अपीलीय ट्रिब्यूनल
  14. दूरसंचार नियामक प्राधिकरण
  15. भारत का प्रतिस्पर्धा आयोग
  16. प्रतियोगिता अपीलीय ट्रिब्यूनल
  17. काॅपीराइट बोर्ड
  18. सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क और सेवा अपीलीय ट्रिब्यूनल

लोक अदालत

भारत की न्यायपालिका में लोक अदालतें नियमित कोर्ट से अलग होती हैं। पदेन या सेवानिवृत जज तथा दो सदस्य एक सामाजिक कार्यकता, एक वकील इसके सदस्य होते है सुनवाई केवल तभी करती है जब दोनों पक्ष इसकी स्वीकृति देते हों। ये बीमा दावों क्षतिपूर्ति के रूप वाले वादों को निपता देती है

इनके पास वैधानिक दर्जा होता है वकील पक्ष नहीं प्रस्तुत करते हैं

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