बेल या जमानत किसे कहते है? | प्रकार | जमानत लेने के नियम?

Bail ya jamanat kaise hoti hai – आज के आधुनिक दौर में अपराधियों द्वारा अपराधों को अंजाम देने के लिए हाईटेक तरीका अपनाया जा रहा है| जिसके कारण देश में अपराधों का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है| हालाँकि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में स्वाभाविक रूप से विभिन्न प्रकार की घटनाएं घटित होती रहती है| यहाँ तक कि जाने अनजाने में कभी-कभी अपराध भी हो जाता है परन्तु बहुत से लोग आपसी रंजिश के कारण उस दूसरे व्यक्ति को झूठे केस में फंसा देते है| ऐसे में उस व्यक्ति को बिना अपराध किये ही पुलिस द्वारा कस्टडी में ले लिया जाता है|  

हालाँकि भारतीय संविधान में ऐसे व्यक्तियों को लिए जमानत लेने का अधिकार प्रदान किया गया है। वह व्यक्ति इस अधिकार का प्रयोग कर न्यायालय से अपनी जमानत या बेल ले सकता है|  लेकिन अपराधों की गंभीरता के देखते हुए कई अपराध ऐसे है, जिनके लिए कानून में जमानत के लिए कोई प्रावधान नही है|  बेल या जमानत किसे कहते है, बेल के प्रकार और जमानत लेने के नियम के बारें में आपको यहाँ पूरी जानकारी विस्तार से प्रदान की जा रही है|

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बेल या जमानत क्या होती है (What is Bail)   

जब पुलिस द्वारा किसी व्यक्ति को अपराध या गैर अपराध में लिप्त पाए जानें के कारण उन्हें कारागार में बंद किया जाता है, तो ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति को जेल से छुड़ाने के लिए न्यायालय से आदेश प्राप्त करना होता है अर्थात उस व्यक्ति को कारागार से मुक्त करनें के लिए न्यायालय में संपत्ति या शपथ ली जाती है, उसे जमानत कहते हैं। कोर्ट में जमानत जमा करनें करने के पश्चात कोर्ट इसके लिए पूर्ण रूप से निश्चिंत हो जाता है, कि आरोपी व्यक्ति सुनवाई के लिए निर्धारित तिथि पर अवश्य उपस्थित होगा| जमानत लेने के पश्चात यदि आरोपित व्यक्ति सुनवाई के लिए कोर्ट में उपस्थित न होने पर जमानत के तौर पर जमा की गई संपत्ति जप्त कर ली जाती है|  आपकी जानकारी के लिए बता दें, कि सभी प्रकार के अपराधों के लिए जमानत देने का प्राविधान नही है| 

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बेल या जमानत के प्रकार (Types of Bail)

  • अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail)
  • अंतरिम जमानत (Interim Bail)

 अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail)

अग्रिम जमानत का मतलब, गिरफ्तार होने से पहले ही न्यायालय से जमानत लेने से है| जब किसी व्यक्ति को पहले से इस बात का आभास हो जाता है, कि उन्हें किसी प्रकरण में दोषी बताते हुए गिरफ्तार किया जा सकता है| ऐसे में वह व्यक्ति पुलिस द्वारा गिरफ़्तारी से बचने के लिए  कोर्ट में अग्रिम जमानत की अर्जी लगाकर जमानत प्राप्त कर सकता है। सीआरपीसी अर्थात दंड प्रक्रिया संहिता धारा 438 में अग्रिम बेल की व्यवस्था की गई है। यदि कोर्ट द्वारा व्यक्ति को अग्रिम जमानत मिल चुकी है, तो पुलिस द्वारा उन्हें उस प्रकरण में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।

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अंतरिम जमानत (Interim Bail)

कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर (CrPC) के सेक्शन 439 में रेगुलर बेल अर्थात अंतरिम जमानत की व्यवस्था की गई है। जब किसी आरोपित व्यक्ति के विरुद्ध मामला ट्रायल कोर्ट में लंबित होता है, तो इस दौरान वह  रेगुलर बेल या अंतरिम जमानत के लिए अर्जी प्रस्तुत कर सकता है। ऐसे में निचली अदालत (Trial Court) या उच्च न्यायालय (High Court) केस की गंभीरता और स्थिति को देखते हुए अपना निर्णय देती है| अंतरिम जमानत के लिए न्यायालय द्वारा आरोपित व्यक्ति से मुचलका (Bond) भरवाया जाता है। हालाँकि जमानत मिलने के पश्चात उन्हें न्यायालय द्वारा दिए गए सभी निर्देशों का पालन करना होता है।

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जमानत कैसे मिलती है (How to Get Bail)

किसी भी प्रकरण में न्यायालय से जमानत या बेल लेना काफी पेचीदा काम है| यदि आपनें किसी अच्छे लॉयर को हायर किया है, तो सभी तथ्यों को बारीकी से देख कर जमानत के लिए  कोर्ट में अर्जी दाखिल किये जाने पर न्यायालय द्वारा जमानत मिल सकती है|  इसके अलावा कुछ अन्य परिस्थितियों में भी जमानत मिल सकती है, जो इस प्रकार है-    

पुलिस चार्जशीट दाखिल न करने पर (For Non-filing of Police Chargesheet)

  • मामला कितना ही गंभीर क्यों न हो, यदि पुलिस द्वारा समय पर चार्जशीट दाखिल न किये जाने पर आरोपित व्यक्ति को कोर्ट से बल दी जा सकती है |
  • कानून के अनुसार, आरोपित व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस द्वारा 3 माह (90 दिन) के अंदर चार्जशीट दाखिल करना होता है|
  • यदि इस दौरान पुलिस द्वारा चार्जशीट दाखिल नहीं की जाती है, तो आरोपित व्यक्ति को कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर (CrPC) की धारा-167 (2) के अंतर्गत जमानत दिए जाने का प्रावधान है।
  • यदि आरोपी को 10 वर्ष से कम की सजा हो सकती है, तो ऐसे स्थिति में पुलिस को 2 माह (60 दिन) के अंदर चार्जशीट दाखिल करना होता है|

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