पुनर्विचार याचिका (Review Petition) क्या है?

पुनर्विचार याचिका (Review Petition) के विषय में जानकारी– किसी भी देश की न्याय प्रक्रिया उस देश को आंतरिक रूप से मजबूत बनाती है, न्याय प्रक्रिया मजबूत होने के कारण ही लोकतंत्र को शक्ति प्राप्त होती है | भारतीय संविधान में भाग 5 में इस प्रकार के प्रावधान किये गए है, जो देश को एक स्थायी मजबूती प्रदान करते है | सर्वोच्च न्यायालय के गठन, शक्तियों और न्याय प्रक्रिया के विषय में अनुच्छेद 124 से लेकर 147 तक जानकारी प्रदान की गयी है | इस पेज पर पुनर्विचार याचिका (Review Petition) क्या है, यह कब और क्यों डाली जाती है – हिंदी में, के विषय में बताया जा रहा है |

पुनर्विचार याचिका क्या है (What is Review Petition)

सर्वोच्च न्यायालय भारत की न्याय प्रक्रिया की सबसे बड़ी संस्था है | भारत के सर्वोच्च न्यायालय को 26 जनवरी 1950 को अस्तित्व में लाया गया था | सर्वोच्च न्यायालय का उद्घाटन 28 जनवरी 1950 को किया गया था | सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लिया गया निर्णय अंतिम निर्णय होता है | इस अंतिम निर्णय को संविधान के अनुच्छेद 137 के अंतर्गत परिवर्तित किया जा सकता है | सर्वोच्च न्यायालय को ही समीक्षा करने की शक्ति प्रदान की गयी है | इस शक्ति के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय अपने दिए गए निर्णयों पर दोबारा सुनवाई कर सकता है | जो पक्ष न्यायालय के द्वारा दिए गए निर्णय से संतुष्ट नहीं होते है वह पुनर्विचार याचिका (Review Petition) के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय से निर्णय बदलने का अनुरोध कर सकते है |

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पुनर्विचार याचिका कब और क्यों डाली जाती है?

जब किसी मामले की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा की जाती है | उस समय सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा अपना निर्णय सुनाया जाता है जिसका अमल करना अनिवार्य रहता है | यदि यह निर्णय किसी के विपरीत रहता है, तो वह पुनर्विचार याचिका के माध्यम से उचित तथ्यों के साथ पुनर्विचार याचिका के लिए आवेदन कर सकता है | सर्वोच्च न्यायालय पुनर्विचार याचिका के तथ्यों की जाँच करता है, यदि उच्चतम न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय को तथ्य सही लगते है, तो वह इस पर पुनः सुनवाई कर सकता है अथवा तथ्य सही नहीं लगने पर उच्चतम न्यायालय पुनर्विचार याचिका को खारिज कर सकता है |

अनुच्छेद 137 (Article 137)

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 137 में उच्चतम न्यायालय द्वारा लिए गए निर्णयों की समीक्षा की जा सकती है | इसका प्रमुख कारण दिए गए निर्णयों में निहित ‘स्पष्टता का अभाव’ तथा ‘महत्त्वहीन आशय’ की गौण त्रुटियां हो सकती है, जिस पर विचार किये बिना ही न्यायालय ने अपना निर्णय दिया हो |
  • पुनर्विचार याचिका के लिए वर्ष 1975 में तत्कालीन न्यायमूर्ति कृष्ण/कृष्णा अय्यर ने अपने निर्णय में कहा था कि “पुनर्विचार याचिका को तभी स्वीकार किया जा सकता है, जब न्यायालय द्वारा दिये गए किसी निर्णय में भयावह चूक या अस्पष्टता जैसी स्थिति उत्पन्न होती हो |” अधिकतर मामलों में सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा उचित तथ्यों के आभाव में ख़ारिज कर दिया जाता है |
  • कई विशेष मामलों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पुनर्विचार याचिका को स्वीकार किया गया है जिसका जीवंत उदाहरण सबरीमाला और राफेल मामला है | केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुनर्विचार याचिका को स्वीकार किया गया था |

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पुनर्विचार याचिका का आधार (Basis for Reconsideration Petition)

पुनर्विचार याचिका के आधार के लिए वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने तीन आधार बतायें थे यह इस प्रकार है-

  • दिए गए निर्णय के बाद नए और महत्त्वपूर्ण साक्ष्यों की खोज हुई हो इनको पूर्व सुनवाई में सम्मिलित न किया गया हो |
  • पूर्व सुनवाई में दस्तावेज़ में कोई त्रुटि अथवा अस्पष्टता पायी गयी हो |
  • कोई अन्य कारण जिस पर पूर्व सुनवाई में सर्वोच्च न्यायालय को ज्ञात न कराया गया हो |

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