Preamble of Indian Constitution – हमारे देश अर्थात भारत का संविधान (Constitution of India) 26 नवंबर 1949 को पारित होनें के पश्चात यह 26 जनवरी 1950 से लागू हुआ | बाबा साहब डॉ. भीम राव अंबेडकर को भारत का संविधान निर्माता (Constitution Maker) कहा जाता है, वह संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष थे | भारत का संविधान एक लिखित संविधान है, और इसकी शुरुआत में एक प्रस्तावना भी लिखी है, जो संविधान की मूल भावना को सामने रखती है| भारतीय संविधान के मूल आदर्शों को प्रस्तावना के माध्यम से संविधान में समाहित किया गया है| भारतीय संविधान में प्रस्तावना का विचार अमेरिका के संविधान से लिया गया है, जबकि प्रस्तावना की भाषा को ऑस्ट्रेलिया संविधान से लिया गया है| प्रस्तावना की शुरुआत “हम भारत के लोग” से शुरू होती है, और ‘26 नवंबर 1949 अंगीकृत’ पर समाप्त होती है| भारतीय संविधान की प्रस्तावना क्या है, शब्दों का अर्थ और महत्व के बारें में आपको यहाँ विस्तार से जानकारी दे रहे है|
संविधान किसे कहते है | परिभाषा | लिखित संविधान | अलिखित संविधान | विशेषताएं
संविधान की प्रस्तावना (Preamble To The Constitution)
विषयसूची
जिस प्रकार किसी भी पुस्तक में लिखी गयी महत्वपूर्ण जानकारी को पुस्तक के पहले पृष्ठ में एक प्रस्तावना (उद्देशिका) / अनुक्रमणिका अंकित की जाती है, जो उस पुस्तक में दी गयी जानकारी को संक्षिप्त रूप में प्रदर्शित करती है और उसके उद्देश्यों को पाठक के सम्मुख प्रकट करती है। जिसे पाठक पढ़कर उस पुस्तक में उपस्थित मूल तत्वों की जानकारी प्राप्त कर सके| इसी प्रकार जब भारत के संविधान का निर्माण किया गया, तो उसके मूल उद्देश्यों को प्रकट करने के लिए उसकी प्रस्तावना की रचना की गयी। भारतीय संविधान की प्रस्तावना इस प्रकार है-
हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :
न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा,
उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए,
दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं |”
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प्रस्तावना में परिभाषित शब्दों का अर्थ (Meaning of The Words Defined in Preamble)
हम भारत के लोग (We, the people of India)
हम सभी भारतीय निवासी भारतीय राजव्यवस्था का मूल आधार है। इन शब्दोँ का महत्व इस अर्थ मेँ है कि अपने संपूर्ण इतिहास मेँ पहली बार भारत के लोग इस स्थिति मेँ हैं कि अपने भाग्य का निर्माण करने का निर्णय स्वयं कर सकें।यह शब्दावली भारतीय समाज के अंतिम व्यक्ति की इच्छा का प्रतिनिधित्व करती है, कि हमारे भारत और उसकी व्यवस्था का स्वरुप क्या होना चाहिए|
संप्रभुता (Sovereign)
संप्रभुता शब्द का अर्थ यह है कि, भारत ने अपने आंतरिक और वाह्य मामलोँ मेँ पूर्णतः स्वतंत्र है, अन्य कोई सत्ता इसे अपने आदेश के पालन के लिए विवश नहीँ कर सकती है।भारत स्वतंत्र होने के बाद से 1949 मेँ राष्ट्रमंडल की सदस्यता स्वेच्छा से की थी। अतः यह भारत की संप्रभुता का उल्लंघन नहीँ है।
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समाजवादी (Socialist)
भारतीय संविधान कि प्रस्तावना में समाजवादी शब्द 1976 के 42वें संविधान संशोधन के द्वारा जोड़ा गया है| इस शब्द का सीधा अर्थ यह है, कि भारत में रहनें वाले सभी धर्मों के लोग एक समान है| यदि समाज में रहनें वाले लोगो के बीच किसी तरह कि असमानता उत्पन्न होती है, तो यह सरकार की जिम्मेदारी है, कि ऐसी नीतियों का निर्माण करे जिससे लोगो के बीच अर्थात समाज में समाजवाद की स्थापना हो |
पंथनिरपेक्ष (Secular)
पंथनिरपेक्ष शब्द घोषित करता है, कि भारत एक राष्ट्र के रुप मेँ किसी धर्म विदेश विशेष को मान्यता नहीँ देता है। इससे यह घोषित होता है, कि भारत में किसी भी धर्म को बड़ा या छोटा न मानते हुए सभी धर्मों को सम्मान एक समान रूप से करता है| पंथनिरपेक्ष शब्द 42 वेँ संविधान संशोधन द्वारा उद्देशिका में शामिल कि गयी थी | पंथनिरपेक्ष अर्थात सेक्युलर के मूल तत्व भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 में समाहित हैं।
लोकतंत्रात्मक (Democratic)
शासन प्रणाली या समाज व्यवस्था सभी क्षेत्रोँ मेँ लोकतंत्र की स्थापना के उद्देश्य का तात्पर्य यह घोषित करता है, कि हम सभी समान है तथा क्योंकि हम मनुष्य है इसलिए अपनें आगे आने वाले भविष्य और वर्तमान के उद्देश्यों और नीतियों को निर्धारित करना हम सभी का समान अधिकार है|
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गणराज्य (Republic)
गणराज्य शब्द का तात्पर्य है, कि राष्ट्र का प्रमुख या अध्यक्ष नियमित अंतराल पर नियमित कार्यकाल के लिए चुना जाता है।भारत मेँ गणतंत्र त्वक व्यवस्था के अंतर्गत राष्ट्र और शासन का प्रमुख एक ही पदाधिकारी राष्ट्रपति होता
सामाजिक आर्थिक एवं राजनैतिक न्याय (Socioeconomic & Political Innovation)
संविधान की प्रस्तावना अर्थात उद्देशिका भारत के नागरिकोँ को आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक नयाय प्राप्त कराने के उद्देश्य की घोषणा करती है।न्याय का सामान्य अर्थ भेद-भाव की समाप्तिहोता है । राजनीतिक न्याय सहित आर्थिक और सामाजिक नयाय के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए नीति-निदेशक तत्वों (भाग-4), मूल अधिकारोँ (भाग-3) मेँ विभिन्न प्रावधान किए गए हैं।
विचार अभिव्यक्ति विश्वास धर्म और उपासना की स्वतंत्रता
इस शब्द का सामान्य अर्थ होता है, व्यक्तिगत विकास हेतु समान अवसरोँ की उपलब्धता।उद्देशिका मेँ वर्णित इन आदर्शोँ की प्राप्ति के लिए संविधान के भाग-3 मेँ मूल अधिकारोँ के अंतर्गत प्रावधान किया गया है।
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प्रतिष्ठा और अवसर की समता (Prestige & Equality of Opportunity)
इस शब्द का तात्पर्य है कि अतार्किक विशेषाधिकारोँ की समाप्ति, आगे बढ़ने के समान अवसर तथा मानव होने के आधार पर सभी समान हैं। इससे संबंधित प्रावधान संविधान के भाग-3 और भाग-4 मेँ उल्लिखित हैं।
एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता (Unity And Integrity)
बंधुता शब्द राष्ट्र के सभी नागरिकोँ के बीच भावनात्मक संबंधों को दृढ़ करने का आदर्श प्रस्तुत करता है, जैसा की परिवार के सदस्योँ के बीच मेँ होता है।भावनात्मक एकता के अभाव मेँ न तो व्यक्ति के सम्मान की रक्षा की जा सकती है और न राष्ट्र की एकता और अखंडता संरक्षित रह सकती है।अखंडता शब्द 42-वेँ संविधान संशोधन द्वारा उद्देशिका मे शामिल किया गया। वस्तुतः स्वतंत्रता, समता और बंधुता का उद्देश्य फ्रांसीसी क्रांति (1889) से प्रभावित है।
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