भारतीय हिन्दू संस्कृति में वस्तुओं को खरीदने के लिए सही महुर्त का विशेष महत्व है | इसके लिए लोग कई दिनों तक इन्तजार किया करते है | भारत में सबसे अधिक सोने को पहनने की संस्कृति रही है सोना अधिक मूल्यवान धातु है अतः इसके लिए सही समय को अधिक महत्व दिया जाता है | अक्षय तृतीया का दिन इसके लिए सबसे उपयुक्त माना है | यहां पर अक्षय तृतीया कब मनाई जाती है और इसका क्या महत्व है, इसके बारे में जानकारी प्रदान की जा रही है |
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अक्षय तृतीया कब मनाई जाती है?
हिंदी महीनों के अनुसार प्रत्येक वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि अक्षय तृतीया को मनाया जाता है| शुभ कार्य करने हेतु इस दिन को सबसे अधिक अच्छा माना जाता है| इसका इतना अधिक महत्व है कि कोई भी कार्य के पंचागं देखने की जरूरत नहीं रहती है| मान्यता है कि इस दिन किये गए कार्यों का फल कई गुना अधिक प्राप्त होता है| इस वर्ष कि अक्षय तृतीया पर शनि की चाल में परिवर्तन को विशेष माना जा रहा है| इसका प्रभाव अगले 6 महीने तक के लिए पड़ सकता है| अक्षय तृतीया को अखतीज के नाम से भी पुकारा जाता है|
अक्षय तृतीया का महत्व
भारत में पुराणों में दी गयी कहानियों में इस तिथि को बहुत ही पुण्यदायी तिथि के रूप में वर्णन प्राप्त होता है | कहा जाता है कि यदि आप इस दिन कोई दान देते है तो इसका पुण्य कई जन्मों तक मिलता रहता है अतः अधिक से अधिक लोग इस दिन पुण्यकार्य करना चाहते है|
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अक्षय तृतीया हेतु मान्यताएं
अक्षय तृतीया के लिए हिन्दू धर्म कई प्रकार की मान्यताएं है यह इस प्रकार है|
1. भगवान परशुराम को भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में जाना जाता है| इनका जन्म महर्षि जमदाग्नि और माता रेनुकादेवी के यहां हुआ था| इसी कारण से इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है | इसी दिन को भगवान परशुराम की भी पूजा की जाती है|
2. राजा भागीरथ को गंगा नदी को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने का श्रेय दिया जाता है | इस कार्य को पूर्ण करने के लिए राजा भागीरथ हजारों वर्ष तक तपस्या की थी| तपस्या के फलस्वरूप उन्हें गंगा नदी को पृथ्वी पर लाने का वरदान प्राप्त हुआ उसी के कारण हम आज पवित्र गंगा में डूबकी लगा पाते है| हिन्दू धर्म के अनुसार मनुष्य के सारे पाप गंगा में स्नान करने से नष्ट हो जाते है|
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3. अक्षय तृतीया के दिन ही मां अन्नपूर्णा का जन्मदिवस को मनाया जाता है| माता के जन्म के गरीबों को भोजन कराया जाता है इसके लिए कई स्थानों पर भंडारे का आयोजन किया जाता है| मां अन्नपूर्णा की पूजा से घर की रसोई हमेशा धन और खाद्य पदार्थों से भरी रहती है| इस दिन पूजा करने के बाद बनायें गए रसोई के भोजन में अत्यधिक स्वाद बढ़ जाता है |
4. महर्षि वेदव्यास जी ने अक्षय तृतीया के दिन ही महाभारत को लिखना प्रारम्भ किया था| यह महाभारत आगे चल कर भारत का सबसे बड़ा साहित्य बन गया| इसको पांचवें वेद के रूप में मान्यता प्रदान की गयी है| इस विशाल संग्रह में ही श्रीमद्भागवत गीता को सम्मिलित किया गया है| माना जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन श्रीमद्भागवत गीता के 18 वें अध्याय का पाठ करने या करवाने से पुण्य प्राप्त होता है|
5. इस दिन को सभी व्यापारी समूह अपना लेखा-जोखा (ऑडिट बुक) को प्रारम्भ करते है खासकर इस मान्यता को पश्चिम बंगाल में अधिक माना जाता है| हलखता के नाम से भी जाना जाता है
6. अक्षय तृतीया को ही भगवान शंकरजी ने कुबेर को माता लक्ष्मी की पूजा करने की सलाह दी थी | इसी के बाद ही इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा करने की परंपरा बन गयी जोकि आज भी चल रही है |
7. इस दिन ही पांडव पुत्र युधिष्ठर को अक्षय पात्र मिला था| इस पात्र की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इसमें कभी भी भोजन ख़त्म नहीं होता था| अक्षय तृतीया के दिन शुभ कार्य करने की परंपरा बनी हुई है| इस दिन के लिए मान्यता है कि न्यूनतम एक गरीब को सत्कार पूर्वक घर बुलाकर भोजन ग्रहण कराना चाहिए|
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