कोको द्वीप बंगाल की खाड़ी में स्थित कुछ छोटे छोटे द्वीपों का समूह है। कोको द्वीप दक्षिण एशिया के सबसे महत्वपूर्ण द्वीपों में एक है। यह द्वीप कोलकाता के 1250 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में स्थित है, यह भूभागीय रूप से कोको द्वीप अराकान पर्वत और राखीन पर्वत का विस्तृत विभाजन है, जो कि बंगाल की खाड़ी में द्वीपों की एक श्रृंखला के रूप में लंबे भूभाग तक फैला हुआ है। प्रशासनिक रूप से यह म्यांमार के यांगून मंडल का हिस्सा है। कोको द्वीप समूह राजनीतिक दृष्टि से भारत और म्यांमार दोनों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।
साल 1990 में भारत के प्रधानमंत्री रहे जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय क्षेत्राधिकार और सुरक्षा की दृष्टि से कोको द्वीप को ज्यादा महत्व न देते हुए इस द्वीप को म्यांमार को तोहफे में दे दिया था, परिणाम स्वरूप म्यांमार से चीन ने कोको द्वीप को ले लिया, इस तरह से चीन की चाल सफल हो गई, चीन की नजरें हमेशा भारत की होने वाली गतिविधियों पर बनी रहती है इसलिए इस आर्टिकल के माध्यम से हम जानेंगे क्यों है कोको द्वीप समूह पर नजर रखने की जरूरत।
कोको द्वीप में तीन मुख्य द्वीप हैं।
विषयसूची
- बडा कोको द्वीप (Great coco island) यह द्वीप 10 किमी लंबा और 2 किमी चौड़ा है इस पर समुद्री कछुओं की काफी आबादी है।
- छोटा कोको द्वीप (Little coco island) यह 5 किमीलंबा और 1 किमी चौड़ा है।
- टेबल कोको द्वीप(Table Coco island )1.6 लंबा और 1.6 किमी चौड़ा एक पुराना प्रकाश स्तंभ हुआ करता था। लेकिन इसको चलाने वाला कोई नहीं है और ना कोई इस द्वीप पर रहता है।
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कोको द्वीप का इतिहास
कोको द्वीप समूह दक्षिण एशिया के सबसे महत्वपूर्ण द्वीपो में से एक है। जो कोलकाता के 1255 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में स्थित है।9
अंडमान निकोबार द्वीप समूह की तरह कोको द्वीप भी सुरक्षा की दृष्टि से भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
जब भारत पर ब्रिटिश राज किया करते थे ,ब्रिटिश राज समाप्त होने के दौरान भारत के सामने कुछ इस तरह की समस्या व कुछ ऐसे मुद्दे थे, जो बिल्कुल भी स्पष्ट नहीं थे ।
ब्रिटिश सरकार कभी भी यह नहीं चाहती थी कि भारत एक विकासशील व ताकतवर देश बने। इसलिए ब्रिटिश सरकार हमेशा फूट डालो और राज करो नीति अपनाते आए हैं । ब्रिटिश सरकार की नजरें हमेशा भारत की भू संपत्ति पर बनी रही है उनमें से एक अरब सागर ,बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर से घिरे द्वीप समूह पर थी ।
ब्रिटिश सरकार हमेशा इन द्वीपों पर अपना अधिकार पाना चाहते थे जिससे उनकी नजरें भारत पर हमेशा बनी रहे और अपना राज कर सकें ब्रिटिश सरकार के साथ ही पाकिस्तान की नजरें भी इन द्वीप समूहो पर थी, पाकिस्तान भी लक्षद्वीप पर कब्जा करना चाहता था जिससे भारत में होने वाली सभी गतिविधियों पर नजर रख सकें। लेकिन सरदार पटेल कभी ऐसा नहीं होने दे सकते थे इसलिए उन्होंने अपने कुशल नेतृत्व के कारण उनकी यह चाल सफल नहीं होने दी। और सरदार पटेल ने पाकिस्तान से पहले ही लक्षद्वीप पर अपनी नौसेना तैनात कर दी थी।
जब ब्रिटिश सरकार को लगा ,सरदार पटेल अंडमान निकोबार ब्रिटिश सरकार को नहीं देंगे, तब उन्होंने कोको द्वीप पर अपना अधिकार पाने की नीति बनाई। कोको द्वीप को पाने के लिए लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सामने कोको द्वीप को लेकर त्रिपक्षीय समझौते का प्रस्ताव रखा।
1950 में नेहरू ने भारत का कोको द्वीप वर्मा (म्यांमार) को तोहफे में दे दिया। बाद में वर्मा ने द्वीप चीन को दे दिया, यहां से चीन की नजरें हमेशा भारत में होने वाली प्रत्येक गतिविधियों पर बनी रहती है।
क्यों पड़ गई ,भारत को कोको द्वीप पर नजर रखने की जरूरत
अंडमान के उत्तर में स्थित कोको द्वीप समूह रणनीतिक दृष्टि से भारत और म्यांमार दोनों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है भारतीय मिसाइलों के प्रक्षेपणो के प्रयास एवं चीन की नजर हर समय बनी रहती है जब भी हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी पर किसी भी तरह की गतिविधियों को अंजाम देने का प्रयास करता है तो चीन की नजर हमेशा उन गतिविधियों पर बनी रहती है ।
सुरक्षा की दृष्टि से किसी भी राष्ट्र के लिए चिंता का विषय है प्रगतिशील राष्ट्र के लिए किसी भी देश की तीखी नजर नुकसानदायक हो सकती है। साम्यवादी चीन जहां भारत की घेराबंदी करने में लगा हुआ है जहां चीनी सैनिकों ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह से 20 किलोमीटर दूर अपना अड्डा बना दिया है।
विडंबना है कि भारत सरकार चीन के साथ सीमा विवादों में उलझा रहता है और चीन भारत को चौतरफा घेरने में लगा हुआ ।
हालांकि भारत और म्यांमार का रिश्ता सदियों से गहरा रहा है म्यांमार हमेशा भारत के साथ खड़ा रहा है परिस्थितियां बदलने में जरा भी समय नहीं लगता है चीन म्यांमार को अपने अनुकूल कर रहा है।
प्रधानमंत्री नेहरू ने क्या की थी बड़ी भूल
भारत-चीन सीमा विवाद में गलवान वैली मैं चीनी सैनिकों द्वारा भारतीय सैनिकों पर आक्रामक हमले के बाद से दोनों देशों के बीच कड़वाहट पैदा हो गई है पर इस हमले के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि यह सब भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की गलती का नतीजा
जब अंग्रेज 1947 में देश को छोड़कर जाने लगे तो वह नहीं चाहते थे कि भारत एक विकासशील व सशक्त देश बने इसीलिए तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने स्वतंत्र भारत से कोको द्वीप को अलग रखने की नियत बना ली थी जवाहरलाल नेहरू की रणनीतिक समझ की कमी और अंग्रेजों के साथ सख्ती से पेश आने की असमर्थता के कारण सबसे प्रमुख रणनीतिक द्वीपो में से एक कोको द्वीप समूह को खो दिया है।
भारतीय रक्षा विशेषज्ञों की दृष्टि से चीन ने पहले से ही भारत की घेराबंदी के नजरिए से कई बंदरगाहों को स्थापित कर लिया है निसंदेह भारत सरकार को कोको द्वीप समूह व राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु ठोस कदम उठाने चाहिए।
जिससे चीन से चलना काम हो सके और भारत की सैन्य शक्ति समृद्ध और प्रभावशाली बने।
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