इलेक्टोरल बॉन्ड क्या हैं, चुनावी बॉन्ड से किस पार्टी को कितना पैसा मिला?

इलेक्टोरल बॉन्ड भारत सरकार द्वारा 2018 में पेश की गई एक वित्तीय साधन है, जिसका उद्देश्य राजनीतिक दान को अधिक पारदर्शी बनाना और राजनीतिक फंडिंग के स्रोतों को वैधता प्रदान करना है। इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से, नागरिक और कॉर्पोरेट संस्थाएँ विशेष रूप से अधिकृत बैंकों से ये बॉन्ड खरीद सकते हैं और उन्हें किसी भी पंजीकृत राजनीतिक पार्टी को दान में दे सकते हैं, जिन्होंने पिछले आम चुनावों में कम से कम एक प्रतिशत मत प्राप्त किया हो।

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उत्पत्ति और लागू होने का उद्देश्य:

विषयसूची

उत्पत्ति: इलेक्टोरल बॉन्ड की अवधारणा को सबसे पहले 2017 के भारतीय संघीय बजट में पेश किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य राजनीतिक दानों में अधिक पारदर्शिता लाना और काले धन के प्रवाह को रोकना था। इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 और आयकर अधिनियम, 1961 में संशोधन करके लागू किया गया था।

लागू होने का उद्देश्य:

  1. पारदर्शिता: इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक फंडिंग की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए डिजाइन किए गए हैं। इसके माध्यम से, दानकर्ताओं की पहचान गोपनीय रखी जाती है, लेकिन साथ ही साथ दान की गई राशि की जानकारी सार्वजनिक की जाती है।
  2. ब्लैक मनी का नियंत्रण: इलेक्टोरल बॉन्ड योजना काले धन को वैध राजनीतिक फंडिंग में परिवर्तित होने से रोकने में मदद करती है, जिससे अनाम और अवैध नकद दान पर लगाम लगती है।
  3. राजनीतिक दानों में सुधार: यह योजना राजनीतिक दानों को और अधिक व्यवस्थित और नियमित बनाती है, जिससे दानकर्ता और प्राप्तकर्ता दोनों के लिए प्रक्रिया सरल हो जाती है।
  4. राजनीतिक पार्टियों के लिए सुरक्षा: चूंकि इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से दिए गए दान को केवल बैंक खाते के जरिए ही भुनाया जा सकता है, इसलिए यह राजनीतिक पार्टियों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करता है और धन के अवैध उपयोग को रोकता है।

इस प्रकार, इलेक्टोरल बॉन्ड भारत में राजनीतिक फंडिंग के ढांचे में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन हैं, जो पारदर्शिता और अखंडता को बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं। हालांकि, इसकी क्रियान्विति और प्रभावों पर व्यापक बहस और चर्चा जारी है।

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इलेक्टोरल बॉन्ड का कार्यप्रणाली और ये कैसे काम करता है।

इलेक्टोरल बॉन्ड की कार्यप्रणाली एक सरल और सीधी प्रक्रिया पर आधारित है जिसमें खरीद, मान्यता, और रिडेम्पशन शामिल हैं। इस प्रक्रिया में वित्तीय संस्थानों, खासकर निर्धारित बैंकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसे समझने के लिए, हमें इसकी खरीद, उपयोग, और रिडेम्पशन की प्रक्रियाओं को विस्तार से जानना होगा। इलेक्टोरल बॉन्ड एक तरह का ऋण पत्र है जिसे भारत सरकार ने 2018 में राजनीतिक दानों के लिए शुरू किया था। यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसके माध्यम से दानकर्ता राजनीतिक दलों को धनराशि दान कर सकते हैं, लेकिन इसकी विशेषता यह है कि दानकर्ता की पहचान गोपनीय रखी जाती है।

खरीद (Purchase):

  1. खरीद प्रक्रिया: इलेक्टोरल बॉन्ड्स को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा निर्धारित अधिकृत बैंकों से खरीदा जा सकता है। ये बॉन्ड विशेष अवधियों में, जैसे चुनावों के समय, उपलब्ध कराए जाते हैं।
  2. नाममात्र मूल्य: इलेक्टोरल बॉन्ड कई मूल्यवर्गों में उपलब्ध होते हैं, जैसे कि 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये, और 1 करोड़ रुपये।
  3. खरीदार की पहचान: खरीदार को बैंक के साथ KYC (Know Your Customer) प्रक्रिया पूरी करनी होती है, लेकिन बॉन्ड के माध्यम से दिए गए दान की जानकारी राजनीतिक पार्टियों या सार्वजनिक के साथ साझा नहीं की जाती है।

मान्यता (Validity):

  1. उपयोग की अवधि: इलेक्टोरल बॉन्ड की खरीद के बाद, इसे 15 दिनों की अवधि के भीतर उपयोग करना होता है। यदि इस अवधि के भीतर बॉन्ड को रिडीम नहीं किया जाता है, तो यह अमान्य हो जाता है।
  2. पारदर्शिता: इस प्रक्रिया के माध्यम से, दानकर्ता की पहचान गुप्त रखी जाती है, लेकिन राजनीतिक दानों की वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित की जाती है।

रिडेम्पशन (Redemption):

  1. रिडेम्पशन प्रक्रिया: राजनीतिक पार्टियां इलेक्टोरल बॉन्ड्स को उनके नाम से खोले गए विशेष बैंक खातों में जमा कर सकती हैं। इस प्रकार, बॉन्ड की राशि को नकद में परिवर्तित किया जा सकता है।
  2. वित्तीय संस्थानों की भूमिका: वित्तीय संस्थान इस प्रक्रिया में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं। वे बॉन्ड की बिक्री, मान्यता की जाँच, और धनराशि के वितरण की निगरानी करते हैं। इससे सुनिश्चित होता है कि धन का स्रोत और उपयोग विनियमित और पारदर्शी तरीके से हो।

इस प्रकार, इलेक्टोरल बॉन्ड की कार्यप्रणाली राजनीतिक फंडिंग को और अधिक पारदर्शी और व्यवस्थित बनाने के उद्देश्य से डिजाइन की गई है। इसके माध्यम से, वित्तीय संस्थानों की एक महत्वपूर्ण भूमिका है, जो इस प्रक्रिया को विनियमित और सुरक्षित रखते हैं।

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इलेक्टोरल बॉन्ड्स के फायदे (Advantages of Electoral Bonds):

इलेक्टोरल बॉन्ड्स की योजना भारत में राजनीतिक दानों के लिए एक नवीन और विवादास्पद वित्तीय साधन के रूप में पेश की गई थी। इसके कई फायदे हैं, जिनमें पारदर्शिता में वृद्धि और अज्ञात दानकर्ताओं की सुविधा शामिल हैं।

पारदर्शिता में वृद्धि:

  1. धन के स्रोत का विनियमन: इलेक्टोरल बॉन्ड्स के माध्यम से, राजनीतिक दान केवल बैंकिंग प्रणाली के जरिए ही किए जा सकते हैं, जिससे अवैध धन के प्रवाह को रोकने में मदद मिलती है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि धन केवल वैध स्रोतों से ही आ रहा है।
  2. वित्तीय लेनदेन का डिजिटलीकरण: चूंकि इलेक्टोरल बॉन्ड्स की खरीद और भुनाई बैंकिंग प्रणाली के माध्यम से होती है, इसलिए सभी लेनदेन का डिजिटल रिकॉर्ड बनता है। यह धन के प्रवाह की निगरानी और ऑडिट को संभव बनाता है।

अज्ञात दानकर्ता:

  1. दानकर्ता की गोपनीयता: इलेक्टोरल बॉन्ड्स के माध्यम से, दानकर्ताओं को उनकी पहचान गोपनीय रखते हुए राजनीतिक दलों को धन देने की सुविधा मिलती है। यह उन दानकर्ताओं के लिए विशेष रूप से लाभदायक है जो अपनी पहचान उजागर होने के डर से दान नहीं करना चाहते।
  2. राजनीतिक प्रतिशोध से सुरक्षा: दानकर्ताओं की पहचान गोपनीय रखने से उन्हें राजनीतिक प्रतिशोध या अन्य प्रकार के दबाव से सुरक्षा मिलती है। इससे दानकर्ता बिना किसी भय के अपनी इच्छानुसार दलों को आर्थिक सहयोग प्रदान कर सकते हैं।

हालांकि, इलेक्टोरल बॉन्ड्स के इन फायदों के बावजूद, इसकी कुछ आलोचनाएँ भी हैं, खासकर पारदर्शिता के मामले में। आलोचकों का कहना है कि दानकर्ताओं की गोपनीयता से यह नहीं पता चल पाता है कि कौन से व्यक्ति या संस्थाएँ राजनीतिक दलों को धन प्रदान कर रहे हैं, जिससे संभावित रूप से वित्तीय अनियमितताएँ और प्रभावशाली दानकर्ताओं द्वारा प्रभाव डालने की संभावना बढ़ जाती है।

इलेक्टोरल बॉन्ड्स की आलोचनाएं (Critiques of Electoral Bonds):

इलेक्टोरल बॉन्ड्स की योजना को लेकर कई आलोचनाएं हैं, जिनमें मुख्य रूप से गोपनीयता के मुद्दे और पारदर्शिता की कमी शामिल हैं। इन आलोचनाओं को विस्तार से समझने की आवश्यकता है ताकि इलेक्टोरल बॉन्ड्स के प्रभावों का पूरा आकलन किया जा सके।

गोपनीयता के मुद्दे:

  1. दानकर्ताओं की अज्ञातता: इलेक्टोरल बॉन्ड्स की एक प्रमुख आलोचना यह है कि यह दानकर्ताओं की पहचान को गोपनीय रखते हैं, जिससे यह नहीं पता चलता कि कौन से व्यक्ति या संस्थाएँ राजनीतिक दलों को फंड प्रदान कर रहे हैं। इससे बड़े व्यावसायिक हितों और अन्य संस्थाओं द्वारा राजनीतिक प्रक्रिया पर प्रभाव डालने की संभावना बढ़ जाती है।
  2. संभावित दुरुपयोग: गोपनीयता के प्रावधान के कारण, व्यक्तियों या संगठनों द्वारा अपने स्वार्थों को बढ़ावा देने के लिए राजनीतिक दलों पर अनुचित प्रभाव डालने की संभावना होती है।

पारदर्शिता की कमी:

  1. सार्वजनिक जवाबदेही में कमी: इलेक्टोरल बॉन्ड्स की एक अन्य प्रमुख आलोचना यह है कि यह राजनीतिक फंडिंग के स्रोतों की पारदर्शिता को कम करता है। चूंकि दानकर्ताओं की पहचान गोपनीय रखी जाती है, इसलिए जनता और निर्वाचन आयोग के लिए यह जान पाना मुश्किल हो जाता है कि कौन से दल को कितना धन मिल रहा है और वह धन कहाँ से आ रहा है।
  2. वित्तीय पारदर्शिता में कमी: इलेक्टोरल बॉन्ड्स राजनीतिक फंडिंग की पारदर्शिता को बढ़ाने के उद्देश्य से पेश किए गए थे, लेकिन आलोचकों का कहना है कि इसने वास्तव में राजनीतिक दानों के स्रोतों को और अधिक अस्पष्ट बना दिया है।

इलेक्टोरल बॉन्ड्स की इन आलोचनाओं ने विभिन्न सामाजिक संगठनों, राजनीतिक दलों, और नागरिक समाज के सदस्यों से योजना में सुधार की मांग को प्रेरित किया है। इसके लिए अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता पर बल दिया गया है, ताकि राजनीतिक फंडिंग की प्रक्रिया में जनता का विश्वास बहाल किया जा सके।

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मामले का अध्ययन (Case Studies):

इलेक्टोरल बॉन्ड्स के उपयोग और इसके प्रभावों पर विशिष्ट मामलों का अध्ययन विविध परिणामों को सामने लाता है। चूँकि इलेक्टोरल बॉन्ड्स के माध्यम से किए गए दानों की पूर्ण गोपनीयता बनी रहती है, इसलिए विशिष्ट दानों और उनके प्रभावों का डेटा सीमित होता है। हालांकि, यहां कुछ सामान्य उदाहरण दिए गए हैं जो इलेक्टोरल बॉन्ड्स की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाते हैं:

1. राजनीतिक फंडिंग में वृद्धि:

  • उदाहरण: कई रिपोर्ट्स के अनुसार, इलेक्टोरल बॉन्ड्स की शुरुआत के बाद से राजनीतिक दलों को प्राप्त होने वाले दान में काफी वृद्धि हुई है। यह वृद्धि इस तथ्य को दर्शाती है कि दानकर्ता गोपनीयता के कारण अधिक सहजता से दान कर रहे हैं।

2. राजनीतिक प्रभाव और नीति निर्माण:

  • उदाहरण: हालांकि विशिष्ट मामलों का खुलासा करना कठिन है, कुछ आलोचकों का मानना है कि बड़े कॉर्पोरेट दानों के माध्यम से राजनीतिक दलों को मिलने वाले फंड ने कुछ क्षेत्रों में नीति निर्माण पर प्रभाव डाला है। ऐसा माना जाता है कि बड़े दान देने वाले अपने हितों के अनुरूप नीतिगत परिवर्तनों को प्रोत्साहित कर सकते हैं।

3. चुनावी प्रतिस्पर्धा में असमानता:

  • उदाहरण: विश्लेषणों से पता चलता है कि मुख्य रूप से सत्तारूढ़ दलों ने इलेक्टोरल बॉन्ड्स के माध्यम से अधिकांश फंड प्राप्त किए हैं। यह चुनावी प्रतिस्पर्धा में एक असमानता को जन्म दे सकता है, जहां सत्तारूढ़ दलों के पास अधिक संसाधन होते हैं।

4. नागरिक समाज और मीडिया की प्रतिक्रिया:

  • उदाहरण: नागरिक समाज के संगठनों और मीडिया ने इलेक्टोरल बॉन्ड्स के उपयोग और प्रभावों पर कई रिपोर्ट्स प्रकाशित की हैं। इन रिपोर्ट्स ने सार्वजनिक जागरूकता और बहस को बढ़ावा दिया है, जिससे इस विषय पर राष्ट्रीय चर्चा में तेजी आई है।

ये उदाहरण इलेक्टोरल बॉन्ड्स की महत्वपूर्ण भूमिका और इसके विविध प्रभावों को दर्शाते हैं। हालांकि, विशेष रूप से इसके प्रभावों का पूर्ण आकलन करना कठिन है क्योंकि बहुत से विवरण गोपनीय रहते हैं।

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वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावनाएँ (Current Status and Future Prospects):

इलेक्टोरल बॉन्ड्स के संबंध में वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावनाएं विवाद और चर्चा के केंद्र में बनी हुई हैं। इसके विभिन्न पहलुओं पर विचार करते हुए, कई नीतिगत परिवर्तन और सुधार के सुझाव सामने आए हैं।

नीतिगत परिवर्तन और सुधार के सुझाव:

  1. पारदर्शिता में वृद्धि: पारदर्शिता की मांग इलेक्टोरल बॉन्ड्स से जुड़े सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक है। इसे बढ़ाने के लिए, दानकर्ताओं की जानकारी को एक निश्चित सीमा तक सार्वजनिक करने का सुझाव दिया गया है, जैसे कि बड़े दानों के मामले में।
  2. रिपोर्टिंग अनिवार्यताओं को मजबूत करना: राजनीतिक दलों के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड्स के माध्यम से प्राप्त फंडों की रिपोर्टिंग अनिवार्यताओं को मजबूत करने का सुझाव दिया गया है, जिससे जनता को बेहतर जानकारी मिल सके।
  3. दान की ऊपरी सीमा निर्धारित करना: कुछ सुझावों में दान की ऊपरी सीमा निर्धारित करना शामिल है, जिससे एकल दानकर्ताओं द्वारा अत्यधिक प्रभाव डालने की संभावना कम हो सकती है।
  4. नियमित ऑडिट और निगरानी: इलेक्टोरल बॉन्ड्स के माध्यम से प्राप्त फंडों के उपयोग पर नियमित ऑडिट और निगरानी की मांग की गई है, जिससे धन के दुरुपयोग की संभावना कम हो।
  5. नीतिगत डायलॉग और समीक्षा: नीतिगत समीक्षा और संवाद के माध्यम से इलेक्टोरल बॉन्ड्स से संबंधित नीतियों को नियमित रूप से अपडेट करने का सुझाव दिया गया है, जिससे इसके प्रभावों को बेहतर ढंग से समझा जा सके।

भविष्य की संभावनाएं:

भविष्य में, इलेक्टोरल बॉन्ड्स से जुड़ी नीतियों में सुधार और उन्हें और अधिक पारदर्शी बनाने की संभावना है। जनता, नागरिक समाज, और राजनीतिक दलों के बीच इस मुद्दे पर बढ़ती चर्चा और आलोचना से नीतिगत परिवर्तनों की दिशा में दबाव बढ़ रहा है। इसके अलावा, न्यायिक समीक्षा और नीतिगत विश्लेषण के माध्यम से इस योजना की वैधता और प्रभावशीलता पर पुनः विचार किया जा सकता है, जिससे राजनीतिक फंडिंग की प्रक्रिया में सुधार हो सकता है।

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इलेक्टोरल बॉन्ड से किस राजनितिक पार्टी को कितना पैसा मिला?

भारत के चुनाव आयोग ने रविवार (17 मार्च) को जानकारी साझा की, जिससे अब यह निर्धारित करना संभव हो गया है कि मार्च 2018 में इस योजना के प्रारंभ से लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसकी समीक्षा किए जाने तक प्रत्येक राजनीतिक दल ने चुनावी बांड के जरिए कितना धन प्राप्त किया है। पिछले महीने इसे असंवैधानिक करार दिया गया था।

यह सामान्य रूप से ज्ञात था कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस अपारदर्शी वित्तीय साधन का सबसे बड़ा लाभान्वित दल रहा है, लेकिन अब हमें पता चला है कि इस योजना के माध्यम से पार्टी को प्राप्त धनराशि 8,251.8 करोड़ रुपये है। यह कुल बेचे गए बांडों की राशि, 16,518 करोड़ रुपये का लगभग आधा है, जिससे पता चलता है कि भाजपा ने बेचे गए कुल बांडों का लगभग 50% राशि भुनाई है।

इस सूची में दूसरे स्थान पर कांग्रेस पार्टी थी, जिसने 1,952 करोड़ रुपये के बांड भुनाए, जबकि तृणमूल कांग्रेस 1,705 करोड़ रुपये के साथ तीसरे स्थान पर थी।

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निष्कर्ष (Conclusion):

इलेक्टोरल बॉन्ड्स की शुरुआत भारत में राजनीतिक फंडिंग के ढांचे में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन के रूप में हुई, जिसका उद्देश्य दान प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाना और काले धन के प्रवाह को नियंत्रित करना था। हालांकि, इस नई वित्तीय साधन की शुरुआत के बाद से, इसने विविध प्रतिक्रियाओं और व्यापक आलोचनाओं को आकर्षित किया है।

समीक्षा और सारांश:

  • पारदर्शिता: इलेक्टोरल बॉन्ड्स ने राजनीतिक दान की प्रक्रिया में कुछ हद तक पारदर्शिता लाने का प्रयास किया, जहां सभी दान बैंकिंग प्रणाली के माध्यम से होते हैं। फिर भी, दानकर्ताओं की गोपनीयता ने पारदर्शिता के इस उद्देश्य पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है।
  • गोपनीयता और अज्ञात दानकर्ता: दानकर्ताओं की गोपनीयता, जो इलेक्टोरल बॉन्ड्स की एक मुख्य विशेषता है, ने अज्ञात फंडिंग स्रोतों के खतरे को जन्म दिया है, जिससे राजनीतिक प्रक्रिया पर अनुचित प्रभाव डालने की संभावना बढ़ गई है।
  • आलोचनाएं और सुधार के सुझाव: इलेक्टोरल बॉन्ड्स की आलोचनाओं में मुख्य रूप से पारदर्शिता की कमी, राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में असमानता, और नीतिगत प्रभावों का डर शामिल है। सुधार के सुझावों में दानकर्ताओं की जानकारी को कुछ सीमा तक सार्वजनिक करना, रिपोर्टिंग अनिवार्यताओं को मजबूत करना, और नियमित ऑडिट की मांग शामिल है।
  • भविष्य की संभावनाएं: इलेक्टोरल बॉन्ड्स के भविष्य में नीतिगत समीक्षा और संभावित सुधार संभव हैं। नागरिक समाज, राजनीतिक दलों, और जनता के बढ़ते दबाव से इस वित्तीय साधन की नीतियों और प्रभावों पर पुनर्विचार किया जा सकता है।

इलेक्टोरल बॉन्ड्स की शुरुआत एक अभिनव कदम था, लेकिन इसके कार्यान्वयन ने राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता और जवाबदेही के मामलों में मिश्रित प्रतिक्रियाएं प्राप्त की हैं। आगे चलकर, इसकी नीतियों में सुधार और रिफॉर्म की दिशा में कदम उठाए जा सकते हैं, जिससे इसके उद्देश्यों को और अधिक प्रभावी ढंग से पूरा किया जा सके।

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